जापान की शिक्षा व्यवस्था और भारत/japan ki shiksha vyavastha aur Bharat

japan ki shiksha

अंग्रेज हमारे देश में उन्नीसवी शताब्दी में व्यापार के उद्देश्य से आये थे लेकिन वे यहाँ के लोगो की अपने देश के प्रति विखण्डता  ,विषमता और विभिन्नता के कारण धीरे-धीरे राजनीतिक ,सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रो में दखल देना शुरू कर दिया और एक दिन लगभग पूरे देश पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन जापान की शिक्षा व्यवस्था बिलकुल अलग तरह की छाप पूरे विश्व पटल पर छोड़ती है .

     अंग्रेज हमारी पुरानी संस्कृति  और शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से बदल कर रख दिया।  क्योंकि अंग्रेजी एक व्यापारी थे तो उनकी शिक्षा व्यवस्था में भी यह संबंधित चीजें देखने को मिलती है।  एक अच्छा व्यापार चलाने के लिए क्या-क्या चीजें आवश्यक होते हैं क्लर्क, कंपनी वर्कर और सिक्यूरिटी या मिलिट्री फोर्सेज। इन्ही तीन चीजो से हमारी एजुकेशन व्यवस्था आज भी प्रभावित है। हमारे यहाँ की शिक्षा अधिकतर डिग्री धारक लोगो की भीड़ जुटा रही  है।  विद्यार्थी शिक्षा इसलिए नहीं लेना चाहता कि उसे लाइफ को एक मीनिंगफुल  बनाना है और ये सीखना कि हमें सीखना कैसे है बल्कि शिक्षा लेकर एक अच्छा अकाउंटेंट बनना ,अच्छा कंपनी वर्कर बनना या किसी अन्य सम्बंधित विभाग में नौकरी लेना  है। आज अपने देश की शिक्षा में- मोरल एजुकेशन  ,सेल्फ responsibility ,इनोवेशन आइडियाज ,देश और समाज के  प्रति सम्मान ,अपने और बड़ो के प्रति सम्मान को जोड़ने की जरुरत है तभी देश का चौतरफा विकास हो सकता है। 

      

  एक छोटा सा देश जापान पूरे विश्व में कई कारणों से विख्यात है ,उनमें से एक है उनकी सुव्यवस्थित शिक्षा व्यवस्था।  जैसा कि हम सभी को पता है भारत का एजुकेशन सिस्टम अलग- अलग बोर्ड में बंटा है -CBSE,ICSE, और  अपना अलग-अलग State Board जबकि जापान में सिर्फ एक ही बोर्ड MEXT (Ministry of Education culture,sport,Science and Technology)के अंतर्गत पढ़ाई होती है। शिक्षा में अलग-अलग बोर्ड और पढने की विभिन्न भाषाए होने से शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। जापान के सभी स्टूडेंट्स इसी बोर्ड के अंतर्गत शिक्षा लेते है।  

    जापान में 6+3+3+4 के फार्मूला  काम करता है मतलब पहले 6 साल नर्सरी और एलीमेंट्री शिक्षा,3 साल जूनियर हाई स्कूल,3 साल सीनियर हाई स्कूल और 4 साल ग्रेजुएशन में पढ़ना पड़ता है। भारत में 5+3+3+4 के नीति पर एजुकेशन काम करता है लेकिन इसके पालन में बहुत ही ढिलाई बरती जाती है। 

    जापान में पहले कि 3 वर्षों में सिर्फ मोरल एजुकेशन, शिष्टाचार,बड़ो के प्रति सम्मान,स्वयं की जिम्मेदारी ,जीवन में अनुशासन का महत्व और देश भक्ति का पाठ पढ़ाया जाता है कोई अन्य स्लैअबस नहीं पढाया जाता है। लेकिन भारत में इन सब पर कम ध्यान दिया जाता है या सिर्फ  किताबी ज्ञान बन कर रह गया है। 

   जापान में स्कूल में प्रवेश करने से पहले बाहर  के शूज  को निकालकर अंदर जाने वाले अलग शूज  पहनना पड़ता है।  क्लास और शौचालयों की साफ़ सफाई वहा के विद्यार्थी सप्ताह में या अल्टरनेटिव डेज में स्वयं करते रहते है जबकि भारत में  स्वच्छ भारत और  स्वस्थ भारत का नारा अपनाने के वावजूद यहाँ के स्कूलों में साफ़ सफाई की व्यवस्था सफाईकर्मी के भरोसे रहती है। 

       यहाँ विद्यालायो में विद्यार्थियो की उपस्थिति बढ़ाने के लिए हम  अभिभावकों से जूझते रहते है वही जापान के सरकारी विद्यालयों में 99.99 % उपस्थिति रहती है। वहा पर विद्यार्थियो को स्कूल न भेजना एक प्रकार का अपराध की श्रेणी में आता है या किसी कारण बस स्टूडेंट एब्सेंट रहने से स्कूल द्वारा मेसेज पैरेंट को भेज दिया जाता है और पेरेंट्स को भी अपने बच्चे को स्कूल न भेज पाने का मेसेज विद्यालय को तुरंत भेजनी पड़ती है।   

     आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी की जापान भले ही भारत से नव गुना छोटा देश है लेकिन वहा की साक्षरता दर 99 प्रतिशत है जबकि भारत की साक्षरता दर 74.4 परसेंट है । भारत की सरकार शिक्षा पर करोडो रुपये  खर्च करने के बाद भी उपयोगी शिक्षा की दर नही बढ़ा पा रही है क्योकि यहाँ पर  कठोर  शिक्षा नीति का  अभी भी अभाव है।  

        भारत और जापान में गुणवत्तापूर्ण  और व्यावसायिक शिक्षा में जमीन आसमान का अंतर है। एक सर्वे के मुताविक भारत में हर साल ग्रेजुएशन किये हुए छात्रो में से 74 प्रतिशत जॉब लेने के लायक नहीं होते है।  इसकाअर्थ हुआ  कि हम educated unemployment की भीड़ को  बढावा दे रहे है ।  जापान में एलीमेंट्री एजुकेशन में ही व्यावसायिक शिक्षा पर जोर देना शुरू कर देते है जैसे -आर्ट एंड क्राफ्ट ,म्यूजिक ,गेम्स ,डांस और वज्ञानिक एक्टिविटी आदि ।  

    भारत में एक ओर जहा कॉलेज की शिक्षा समाप्त करते ही नौकरी या किसी प्रतियोगी एग्जाम को पास करने की होड़ सी लग जाती है लेकिन जापान में ऐसा नहीं होता है वहा पर ग्रेजुएशन के बाद एक साल के लीडरशिप की ट्रेनिंग लेना जरूरी होता है । जिसका फायदा उन्हें अपनी नौकरी या व्यवसाय में मिलता है ।  

         

       अगर भारत को अपनी शिक्षा व्यवस्था को सुधारना है तो सबसे पहले प्राइमरी एजुकेशन सिस्टम को सुधारना पड़ेगा । देश के लगभग हर राज्य की प्राइमरी एजुकेशन सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त पड़ा है । यह एक आश्चर्य की बात है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी खुद अपने बच्चे को सरकारी प्राथमिक स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहता है जबकि जापान में 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे प्राथमिक विद्यालयो में पढ़ते है ।

                    अतः हमें सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा को सुधारने पर जोर देना चाहिए तभी देश का विकास संभव है ।  

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