सफलता के 7 सूत्र/Saflta ke 7 sutra

सफलता

 मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। और हर व्यक्ति जीवन में सफलता पाने के लिए आतुर रहता है -वह चाहे  एक  अच्छी जॉब का हो या फिर एक सफल व्यवसाय के रूप में। इसके लिए जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है वह प्रायः नहीं जुटा पाता है। एक असफल व्यक्ति दुर्भाग्य को कोसने के साथ -साथ सफल व्यक्तियों से इर्ष्या भी करने लगता है। धीरे-धीरे वह व्यक्ति निराशा और आत्महीनता  का शिकार हो जाता है  और एक  दिन जीवन को व्यर्थ समझने लगता है इसी मनोविकार के चलते वह कभी -कभी आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दे देता है,जो व्यक्ति और समाज के लिए घातक  है। इसी कारण हम यहा सफलता के सात  सूत्र बताये है जिसको  सीढ़ियों की तरह अपनाकर  एक – एक  स्टेप  पार करके आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। 

 सफलता और लक्ष्य 

       लक्ष्य निर्धारित करते समय हमें अपने दुर्बलताओ और क्षमताओ का  ध्यान रखना चाहिए। दुर्बलता को दूर करने के साथ -साथ अपनी क्षमता विशेष का भी विकास करना  ताकि हममे आत्मविश्वास की कमी ना आने  पाए।  

     जब हम किसी लक्ष्य को निर्धारित कर लेगे  तो तो उसी पर ही हम अपना चिंतन और मनन करेंगे और उसे प्राप्त  करने का पूरा प्रयास भी। उसको पूरा करने को लेकर हम लोगों से चर्चा ,बात चीत भी  करेंगे,तो संयोग  और साधन भी विकसित होंगे और अपनी लगातार प्रयासों से अंततः लक्ष्य प्राप्ति का हमारा सपना पूरा हो जाएगा।  हम जो कुछ भी कर सकते है या जो भी सपना देख सकते है ,उसे अभी से ही शुरू कर देना चाहिए। 

               महान लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमें  महत्वाकांक्षी बनना होगा। जैसी हमारी इच्छा- आकांक्षा होगी उसी  के अनुरूप हमारे हावभाव मुख -मंडल पर होंगे। लक्ष्य को ही आप अपना जीवन – कार्य समझो। हर समय उसी का चिंतन करो, उसी का सपने देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। 

 सफलता के लिए संकल्प 

           इस संसार में  हर वस्तु संकल्प – शक्ति पर निर्भर करती है। संकल्प मनुष्य वह कार्य करवा लेता है जिसके बारे में वह स्वयं भी न सोचा होगा। संकल्प मन का वह दृढ़ निश्चय है जो तब तक अडिग रहता है जब तक हम अपने लक्ष्य या सफलता को प्राप्त न कर ले। 

    ठुलमुल इरादे से काम करने से हम अपना समय और धन दोनों बर्बाद करते है और कोई परिणाम भी नहीं मिलता है। इसलिए हमें कभी अपने आप को कमजोर ,असहाय ,बेबस और हारा हुआ नहीं समझाना चाहिए क्योकि हर सफलता का स्रोत साधनों या संसाधनों में नहीं हमारे संकल्प में होता है। 

सफलता के लिए चरित्र का महत्व  

     विचारों से आचरण निर्मित  होता है और आचरण से चरित्र। चरित्र वृक्ष है, प्रतिभा उसकी छाया।

    हमारे व्यक्तित्व में चरित्र का  स्थान है ,जो शरीर में आत्मा का। यह हमारे मूल्यों और गुणों से निर्मित होता है इसलिए चरित्रवान व्यक्ति का  हर जगह आदर और सत्कार होता है जो उसकी सफलता में सहायक होता है।  हमारा व्यवहार हमारे  चरित्र का दर्पण होता है।

व्यक्तित्व

        सफलता की प्राप्ति दृढ़ संकल्प तथा अच्छे व्यक्तित्व से होती है।

   व्यक्तित्व अनेक तत्वों  से निर्मित और बना होता है। ये तत्व है आत्मा-चेतना ,आत्मा-सम्मान,आत्मा-विश्वास ,चरित्र, प्रेरणा ,लगन, परिश्रम ,ज्ञान ,बुद्धि ,विवेक, कर्म तथा धैर्य। इन तत्वों से निर्मित और विकसित व्यक्तित्व का हर जगह संसार में उन्नति होती है और भौतिक विकास भी होता है  जिससे वह सफलता की नित उचाइओ को चूमता चला जाता है।

अवसर 

    कोई  व्यक्ति सफल तभी बन सकता है जब उसे अपनी शक्ति के उपयोग और विकास का अवसर मिले।  प्रकृति चर -अचर सभी को उनके गुणों के प्रदर्शन का अवसर देती है पर जोई लोग उसका लाभ नहीं उठा पाते वे लोग जिंदगी में पीछे रह जाते है।

    इस संसार में हर व्यक्ति को भाग्योदय का अवसर जरूर मिलता है जो उसका स्वागत किया ,सफलता उसको जरूर मिली होगी अन्यथा वह उलटे पाँव लौट जाती है। इसलिए समय को नष्ट न करो क्योकि  जीवन इसी से बना है। अतीत को हम बदल नहीं सकते और भविष्य को हम अपनी कड़ी मेहनत से  बेहतर बना  सकते है और बचा वर्तमान।  इसलिए हमें इसी पर विचार  करना चाहिए।

प्रयास

   सतत प्रयास करने वाले की गोद में सफलता स्वयं आकर बैठ जाती है।  क्योकि कहा भी गया है कि 

लहरों के डर  से ,नौका पार नहीं होती ,

कोशिश करने वालो की हार नहीं होती। 

  किसी कार्य के संपादन में चार तत्वो का योगदान होता है –निश्चय ,प्रयास ,क्रिया और पूर्णता।  इसमें प्रयास का विशेष महत्व होता है। पहले हम किसी कार्य की करने का निश्चय करते है ,फिर उसे क्रिया में बदलते है। किसी कार्य को क्रियान्यवित करने का साहस ही प्रयास है। उर्जा और उत्साह के फलस्वरूप प्रयास का उदय होता है। 

    जुगनू तभी चमकता है जब वह बाहर आता है।  कछुए और खरगोश दौड़ वाली कहानी में कछुए ने  प्रयास करना नहीं छोड़ा  जिसके फलस्वरूप उसे अंततः सफलता मिली।

परीक्षा

                          प्रकृति  किसी कार्य में सफल होने के लिए परीक्षा जरूर लेती है और वैसा ही फल देती है ,जैसा हमारा कर्म होता है। सफलता की परीक्षा में वही खरे उतरते  हैं जिनमे आत्मविश्वास होता है। इसीलिए हमें हर सफलता के लिए एक निश्चित इम्तिहानऔर दृढ़ इच्छा शक्ति से होकर गुजरना पड़ता है क्योकि कहा भी गया है –

   कौन कहता है कि आसमा में छेद  नहीं हो सकता ,एक पत्थर तबियत से उछालो तो यारो। 

   जीत और हार अकारण नहीं होती -यह हमारे कर्म  और संयोग का संयुक्त परिणाम है। एक बार जब आप अपनी मंजिल decide कर ली तो बस अब अपना पूरा ध्यान रास्ते पर फोकस करे ,ऐसा करने से सफलता अपने आप चल कर आयेगी। यह लेख आपको कैसा लगा ,इसके बारे में अपने बहुमूल्य सुझाव कमेंट करके हम तक जरूर पहुचाये। 

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धन्यबाद .

      

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